शुकनासोपदेश का सारांश लिखिए | Shuknasopadesh ka Saransh in Hindi
शुकनासोपदेशः मन्त्री शुकनास राजकुमार चन्द्रपीड को उपदेश देते हुए कहता है, कुमार युवावस्था में उत्पन्न अन्धकार अत्यन्त गहन होता है। आप लक्ष्मी को ही देखें, यह मिलती नहीं और मिलने पर दुःख से रक्षा की जाती है। यह परिचय की परवाह नहीं करती, न कुल देखती है, न रूप, शील, त्याग, आचार, धर्म, सत्य आदि की परवाह करती। गुणवान को अपवित्र समझती है, सज्जन को अपशकुन, शूर को कण्टक ( कांटा ), विनीत को पापी, मनस्वी को पागल समझकर दूर से छोड़ देती है।
इस दुष्टा के द्वारा दैववश पकड़े गये राजा सारी अशिष्टता के आधार बन जाते हैं । झूठी प्रशंसा के गर्व से चूर देवता और ब्राह्मणों को प्रणाम नहीं करते । मान्य एवं पूज्य व्यक्तियों को सम्मान नहीं करते , गुरुजनों का आदर नहीं करते । वृद्धों के उपदेश को बकवास समझते हैं, उसी को पास में रखते हैं, उसी से मित्रता करते हैं, उसी का आदर करते हैं, उसी की बात सुनते हैं जो रात-दिन सब काम छोड़कर हाथ जोड़कर उनकी खुशामद करता है ।
इसलिए हे कुमार ! इस राजतन्त्र में और महामोहकारिणी युवावस्था में तुम्हें ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे लोगों द्वारा हँसे न जाओ, गुरुजनों द्वारा धिक्कारे न जाओ, मित्र तुम्हें उलाहना न दे सकें, धूर्तों द्वारा ठगे न जा सको, स्त्रियाँ तुम्हें लुभा न सकें। यह विद्वान धैर्यशाली, कुलीन और प्रयत्नशील व्यक्ति को भी दुष्ट बना देती है। अतः तुम कुल क्रमागत राज्य का भोग करो, इतना कहकर मन्त्री चुप हो गया।
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